कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi

जन्म स्थान (Birthplace) : काशी, उत्तर प्रदेश उम्र (Age): 119-120 वर्षविवाहित स्थिति (Marital Status) : married

कौन हैं कबीर दास (Kabir Das) ?

कबीर दास (Kabir Das) जी एक महाव कवि थे जिन्होंने कई सारे दोहे और भक्ती गीत लिख रखे हैं. कबीर दास द्वारा लिखे गए दोहों को आज भी पढ़ा जाता है और ये हमारे देश के अनमोल रत्नों में से एक थे. कबीर दास जी हिन्दी साहित्य के एक महान कवि ही नहीं, बल्कि विद्दंत विचारक एवं समाज सुधारक भी थे, उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति और सकारात्मक विचारों के माध्यम से कई रचनाएं लिखीं और भारतीय संस्कृति के महत्व को समझाया।

भक्तिकाल के प्रमुख कवि कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को जीवन जीने का सही मार्ग समझाया। इसके अलावा उन्होंने अपनी समाज में प्रचलित जातिगत भेदभाव, ऊंच-नीच आदि बुराईयों को भी दूर करने की कोशिश की। इसके साथ ही हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कबीरदास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था, उनकी रचनाओं और दोहों में ब्रज, हरियाणवी, पंजाबी, हिन्दी, अवधी, राजस्थानी, समेत खड़ी बोली देखने को मिलती है। आपको बता दें कि कबीर दास जी भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से प्रभावित थे, उनका प्रभाव सिख, हिन्दू और इस्लाम तीनों धर्मों में देखने को मिलता है। वहीं कबीरदास जी के उपदेशों को मानकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को बदल सकता है।

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पूरा नाम (Name)कबीर दास (Kabir Das)
उपनाम (Nickname)कबीर
पेशा (Profession)कवि
जन्म स्थान (Birthplace)काशी, उत्तर प्रदेश
जन्म तिथि (Date of Birth)1398
उम्र (Age) [as on 2022]119-120 वर्ष
होमटाउन (Hometown)काशी, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएं (Kabir das Poems)साखी, सबद, रमैनी
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय
शैक्षिक योग्यता (Educational qualification)निरक्षर
धर्म (Religion)Hindu
विवाहित स्थिति (Marital Status)married

फैमिली (Family)

पिता का नाम (Father)नीरू
माता का नाम (Mother)नीमा
भाई (Brother)Not Known
बहन (Sister)Not Known
OtherNot Known
वैवाहिक स्थिति (Marital Status)Married
(Wife)लोई
बच्चे (Children)कमल और कमाली

कबीर दास का जन्म और परिवार (Kabir Das Birth, Family)

कबीर दास जी का जन्म कब हुआ था इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म 1398 में उत्तर प्रदेश के काशी शहर में हुआ था. इनके माता पिता के बारे में किसी भी तरह की जानकारी उपलब्ध नहीं है. ऐसा भी माना जाता है कबीर दास को एक मुस्लिम परिवार द्वारा पाला गया  था. हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है. कबीर दास की पत्नी का नाम कोकी (Kokli) था और इनके बच्चों का नाम कमल और कमाली था.

कबीर दास जी की शिक्षा – Kabir das Education

कहा जाता है कि कबीर दास जी निरक्षर थे अर्थात वे पढ़े लिखे नहीं थे लेकन वे अन्य बच्चों से एकदम अलग थे आपको बता दें कि गरीबी की वजह से उनके माता-पिता उन्हें मदरसे नहीं भेज सके। इसलिए कबीरदास जी किताबी विद्या नहीं ग्रहण कर सके।

मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।

आपको बता दें कि कबीरदास जी ने खुद ग्रंथ नहीं लिखे वे उपदेशों को दोहों को मुंह से बोलते थे जिसके बाद उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।

कबीर दास का इतिहास – Kabir Das History in Hindi

कबीर दास भारत के महान कवि और समाज सुधारक थे। वे हिन्दी साहित्य के विद्दान थे। कबीर दास के नाम का अर्थ महानता से है अर्थात वे भारत के महानतम कवियों में से एक थे।

जब भी भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति की चर्चा होती है तो Kabir Das – कबीर दास जी का नाम का जिक्र सबसे पहले होता है क्योंकि कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को दर्शाया है, इसके साथ ही उन्होनें जीवन के कई ऐसे उपदेश दिए हैं जिन्हें अपनाकर दर्शवादी बन सकते हैं इसके साथ ही कबीर दास ने अपने दोहों से समाज में फैली कुरोतियों को दूर करने की कोशिश की है और भेदभाव को मिटाया है।

वहीं कबीर पंथी धार्मिक समुदाय के लोग कबीर के सिद्धांतो और उनके उपदेशों को अपनी जीवन का आधार मानते हैं।

कबीर दास जी के द्धारा कहे गए दोहे इस प्रकार हैं।

“जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।”

इस दोहे से कबीर दास जी का कहने का अर्थ है कि जो लोग कोशिश करते हैं, वे लोग कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

वाकई में कबीर दास – Kabir Das जी इन उपदेशों को पढ़कर सभी के मन में सकरात्मक भाव पैदा होता है और वे सफलता की तरफ अग्रसर होते हैं। इसके साथ ही कबीर दास – Kabir Das ने ये भी कहा कि बड़ी बड़ी किताबें पढ़ कर दुनिया में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, लेकिन सभी विद्वान नहीं हो सके।

कबीर मानते थे कि अगर प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

Kabir ke Updesh – कबीर दास जी के कहे गए उपदेश वाकई प्रेरणा दायक हैं इसके साथ ही कबीर दास ने अपने उपदेशों को समस्त मानव जाति को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दी इसके साथ ही अपने उपदेशों के द्धारा समाज में फैली बुराइयों का कड़ा विरोध जताया और आदर्श समाज की स्थापन पर बल दिया इसके साथ ही कबीर दास जी के उपदेश हर किसी के मन में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं आइए जानते हैं।

कबीर दास के गुरू (Kabir Das ki Guru)

कबीर के गुरू का नाम रामानंद था और इन्होंने रामानंद जी से ही शिक्षा हासिल की थी. कहा जाता है कि रामानंद को अपना गुरु बनाने के लिए कबीर दास को खूब मेहनत करनी पड़ी थी. कबीर दास से जुड़ी एक कथा के अनुसार  रामानंद जी काशी के प्रसिद्द विद्वान और पंडित हुआ करते थे. कबीर जी इनके शिष्य बनाना चाहते थे और कबीर जी अक्सर इनसे मिलने के लिए इनके आश्रम में जाया करते थे. लेकिन  रामानंद  को कबीर दास पसंद नहीं थे और वो इनको अपना शिष्य नहीं बनाना चाहते थे. मगर कबीर दास हमेशा इनसे यही विनती करते थे कि ये उन्हें अपना शिष्य बना लें.

कबीर दास को पता था कि गुरु रामानंद रोज सुबह घाट पर जाकर स्नान किया करते हैं. एक दिन कबीर दास ने  घाट में जाने से जुड़े सभी रास्तों को बंद कर दिया था और केवल एक ही रास्ते को खुला रखा था. जिसके चलते जब गुरु रामानंद घाट पर स्नान करने आए तो उनको कबीर द्वारा रखी खुली जगह से ही जाना पड़ा. वहीं  गुरु रामानंद जैसे ही नदी में जाने लगे उनके पैर कबीर के पैर के ऊफर आ गया. जिसके चलते कबीर दास के मुंह से ‘ राम राम’ निकल पड़ा. कबीर के मुंह से भगवान का नाम सुन  गुरु रामानंद खुश हो गए और उन्होंने कबीर दास को अपना शिष्य बना लिया. गुरु रामानंद से कबीर दास को काफी कुछ सीखने को मिला और आगे जाकर ये एक महान कवि बन गए. कबीर दास ने कई सारी दोहे और रचनाएं लिख रखी हैं.

कबीरदास जी का विवाह और बच्चे – Kabir Das Life History in Hindi

संत कबीरदास जी का विवाह वनखेड़ी बैरागी की कन्या ”लोई” के साथ हुआ था। विवाह के बाद दोनों को संतान का सुख मिला कबीरदास जी के बेटे का नाम कमाल था जबकि बेटी का नाम कमाली था। वहीं इन लोगों को परिवरिश करने के लिए कबीरदास जी को अपने करघे पर काफी काम करना पड़ता था।

जिससे घर साधु-संतों का आना-जाना लगा रहता था। वहीं उनके ग्रंथ साहब के एक श्लोक से अनुमान लगााया जाता है उनका पुत्र कमाल कबीर दास जी के मत का विरोधी था।

“बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल। हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।”

जबकि कबीर जी की पुत्री कमाली का वर्णन कबीर जी ने कहीं पर भी नहीं किया है। कबीर जी के घर में संत-मुनियों के लगातार आने-जाने उनके बच्चों को खाना मिलना तक मुश्किल हो गया था। इस वजह से कबीर की पत्नी गुस्सा भी करती थी जिसके बाद कबीर अपनी पत्नी को ऐसे समझाते हैं –

“सुनि अंघली लोई बंपीर। इन मुड़ियन भजि सरन कबीर।।”

आपको बता दें कि कबीर को कबीर पंथ में, बाल- ब्रह्मचारी और विराणी माना जाता है। इस पंथ के अनुसार कामात्य उनका शिष्य था और कमाली और लोई उनकी शिष्या थी। लोई शब्द का इस्तेमाल कबीर जी ने एक जगह कंबल के रुप में भी किया है। वहीं एक जगह लोई को पुकार कर कबीर ने कहा कि –

“कहत कबीर सुनहु रे लोई। हरि बिन राखन हार न कोई।।”

वहीं यह भी माना जाता है कि लोई कबीर जी की पहले पत्नी होगी इसके बाद कबीर जी ने इन्हें शिष्या बना लिया हो। कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कि –

“नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार। जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार।।”

कबीर दास की मृत्यु ((Kabir Das Death, Age)

कबीर दास की मृत्यु कब हुई थी इसके बारे में भी सही जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इनकी मृत्यु 1518 में हुई थी और उस समय इनकी आयु 119-120 थी.

कबीर दास द्वारा लिखे गए दोहे (Kabir Das Dohe In Hindi)

  1. दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
    जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥ 1 ॥

इस दोहे में कबीर दास जी कहा है कि जब किसी व्यक्ति के जीवन में कोई परेशानी आती है तो वो व्यक्ति सीधा भगवान के पास जाकर उनकी पूजा करना शुरू कर देता है. लेकिन जब वहीं व्यक्ति सुख में होता है तो वो भगवान को याद करना भुल जाता है. इस दोहे में कबीर जी आगे कहते हैं कि अगर व्यक्ति अपने अच्छे समय पर भी भगवान को याद करे तो उसे कभी भी दुख का सामना नहीं करना पड़ेगा.

2. लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

3. जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

4. तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर ।
तब लग जीव जग कर्मवश, ज्यों लग ज्ञान न पूर ॥

5. आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रकट होय ।
सो जाने जो जरमुआ, जाकी लाई होय ॥ 56 ॥

कबीर दास द्वारा लिखी गई रचनाओं के नाम

कबीर दास ने अपने जीवन में कई सारी रचानएं लिख रखी हैं और इनके द्वारा लिखी गई जो रचनाएं सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं उनके नाम इस प्रकार हैं-

संख्यारचना का नाम
1अगाध मंगल
2अठपहरा
3अनुराग सागर
4अमर मूल
5अर्जनाम कबीर का
6अलिफ़ नामा
7अक्षर खंड की रमैनी
8आरती कबीर कृत
9उग्र गीता
10उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
11कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी
12भाषो षड चौंतीस
13मुहम्मद बोध
14मगल बोध
15रमैनी
16राम रक्षा
17राम सार
18रेखता
19कबीर की वाणी
20कबीर अष्टक
21कबीर गोरख की गोष्ठी
22कबीर की साखी
23बलख की फैज़
24बीजक
25व्रन्हा निरूपण

कबीर दास (Kabir Das) के बारे में कुछ तथ्य :

  • करीब दास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था वे साधु-संतों के साथ कई जगह भ्रमण पर जाते रहते थे इसलिए उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान हो गया था। इसके साथ ही कबीरदास अपने विचारो और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। कबीर दास जी की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है।
  • संत कबीर अपनी स्थानीय भाषा में लोगो को समझाते थे और उपदेश देते थे। इसके साथ ही वे जगह-जगह पर उदाहरण देकर अपनी बातों को लोगो के अंतरमन तक पहुंचाने की कोशिश करते थे। कबीर के वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है। जो ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। कबीर ग्रन्थावली में भी उनकी रचनाएं का संग्रह देखने को मिलता है।
  • उन्होनें ने गुरु का स्थान भगवान से बढ़कर बताया है। कबीरदास ने एक जगह पर गुरु को कुम्हार का उदाहरण देते हुए समझाया है कि – जो मिटटी के बर्तन के समान अपने शिष्य को ठोक-पीटकर सुघड़ पात्र में बदल देता है।
  • कबीर दास हमेशा सत्य बोलने वाले निडर और निर्भाक व्यक्ति थे। वे कटु सत्य भी कहने से नहीं बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते थे।
  • संत कबीर दास की ये भी एक खासियत थी कि वे निंदा करने वाले लोगों को अपना हितैषी मानते थे। कबीरदास को सज्जनों, साधु-संतो की संगति अच्छी लगती थी। कबीर दास जी का कहना था कि –
  • वे अपने उपदेशों से समाज में बदलाव करना चाहते थे और समस्त मानव जीवन को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते थे।
  • एक महान रहस्यवादी कवि, कबीर दास, भारत के प्रमुख आध्यात्मिक कवियों में से एक हैं जिन्होंने लोगों के जीवन को बढ़ावा देने के लिए अपने दार्शनिक विचार दिए हैं।
  •  ईश्वर में एकता के उनके दर्शन और वास्तविक धर्म के रूप में कर्म ने लोगों के मन को अच्छाई की ओर बदल दिया है। ईश्वर के प्रति उनका प्रेम और भक्ति हिंदू भक्ति और मुस्लिम सूफी दोनों की अवधारणा को पूरा करती है।
  • ऐसा माना जाता है कि वह हिंदू ब्राह्मण परिवार से थे, लेकिन मुस्लिम बुनकरों द्वारा बिना बच्चे, नीरू और निम्मा के समर्थक थे। 
  • वह उनके द्वारा लहरतारा (काशी में) के एक विशाल कमल के पत्ते पर स्थित तालाब में स्थापित किया गया था। उस समय रूढ़िवादी हिंदू और मुस्लिम लोगों के बीच बहुत असहमति थी जो कबीर दास का मुख्य फोकस अपने दोहे या दोहों द्वारा उस मुद्दे को हल करना था।
  • व्यावसायिक रूप से उन्होंने कभी कक्षाओं में भाग नहीं लिया लेकिन वे बहुत ही ज्ञानी और रहस्यवादी व्यक्ति थे। उन्होंने अपने दोहे और दोहे औपचारिक भाषा में लिखे जो उस समय बहुत बोली जाती थी जिसमें ब्रज, अवधी और भोजपुरी भी शामिल हैं। उन्होंने सामाजिक बाधाओं के आधार पर बहुत सारे दोहे, दोहे और कहानियों की किताबें लिखीं।

FAQ’s

Q1. कबीर दास के माता-पिता का क्या नाम है?

उनके असली माता-पिता का नाम अज्ञात है, लेकिन नीरू और नीमा ने उन्हें वाराणसी में एक तालाब के किनारे पड़ा पाया।

Q2. कबीर ने कितने दोहे लिखे?

उन्होंने 25 दोहे लिखे।

Q3. कबीर दास के गुरु कौन थे?

रामानंद, एक हिंदू भक्ति नेता उनके गुरु थे; हालाँकि उनके गुरु हिंदू थे, लेकिन किसी एक धर्म ने उन्हें कभी प्रभावित नहीं किया।

Q4. कबीर दास की विभिन्न साहित्यिक कृतियाँ क्या हैं?

कबीर दास की कुल 72 रचनाएँ हैं और उनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं कबीर बीजक, कबीर बानी, रेख़्ता, अनुराग सागर, सुखनिधान, मंगल, कबीर ग्रंथावली, वसंत, सबदास, सखियाँ आदि।

Q5. कबीर दास की पत्नी का क्या नाम था

कबीर ने अंततः लोई नामक एक महिला से शादी की और उनके दो बच्चे थे, एक बेटा, कमल और एक बेटी कमली थी।

Q6. कबीर दास जी किसके अवतार थे?

कबीर जी किसी का अवतार नही, एक भगत, संत है

Q7. कबीर के आराध्य कौन है?

कबीर ने ब्रह्म अर्थात परम पिता परमेश्वर को अपना आराध्य माना।

Q8. कबीरदास का विवाह किससे हुआ था?

कबीरदास का विवाह लोई नामक एक महिला से हुआ था

Q9. कबीर जी ने असली ज्ञानी किसे कहा है?

कबीर कहते हैं कि बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर वे सभी विद्वान न हो सके। यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षरअच्छी तरह पढ़ ले, तो वही सच्चा ज्ञानी होगा

Q10. कबीर की भाषा शैली कैसी थी?

कबीरदास जन-सामान्य के कवि थे, अत: उन्होंने सीधी-सरल भाषा को अपनाया है। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं के शब्द खड़ी बोली, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी, पंजाबी, ब्रज, अवधी आदि के प्रयुक्त हुए हैं, अत:, ‘पंचमेल खिचड़ी’ अथवा ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे ‘सधुक्कड़ी’ नाम दिया है।

Q11. कबीर दास जी के कितने ग्रंथ हैं?

कबीर पढ़े लिखे नहीं थे पर उनकी बोली बातों को उनके अनुयायियों ने लिपिबद्ध किया जो लगभग 80 ग्रंथों के रूप में उपलब्ध है।

Q12. कबीर दास जी के गुरु कौन थे?

कबीर के सभी जीवनी-लेखकों ने इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि कबीर को रामानन्द ने दीक्षा दी थी, अर्थात् रामानन्द कबीर के गुरु थे।

Q13. कबीर की भाषा को पंचमेल खिचड़ी किसने कहा था?

कबीर की भाषा मिली जुली है। इसीलिए कबीर की भाषा को श्याम सुंदर दास ने पंचमेल खिचड़ी और आचार्य शुक्ल ने सधुक्थड़ी भाषा कहा है।

Q14. कबीर की भाषा को साधु कड़ी किसने कहा है?

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने कबीर दास के भाषा को साधुक्कड़ी भाषा कहा है।

यदि आपके पास कबीर दास (Kabir Das) के बारे में अधिक जानकारी है। कृपया नीचे comment करें हम एक घंटे के भीतर अपडेट करेंगे।

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