10+ नंदगाँव में घूमने की जगह और दर्शनीय स्थल

नंद गांव, भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक छोटा सा गांव है, जो उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के उत्तर पश्चिम में लगभग पचास किलोमीटर की दूरी पर बरसाना क्षेत्र में स्थित है।

भगवान श्री कृष्ण का पूरा बचपन इसी गांव में बीता था। नंदगांव नंदीश्वर नामक सुंदर पहाड़ी पर स्थित है, जिसे भगवान श्री कृष्ण के पिता नंद राय के द्वारा बसाया गया था।

भारत में कई सारे लोग भगवान श्री कृष्ण के भक्त हैं, जो भगवान श्री कृष्ण के इस पावन धरती पर उनकी अतीत को समर्पित विभिन्न मंदिरों का दर्शन करने के लिए आते हैं। यहां पर भगवान श्री कृष्ण के बचपन की स्मृतियों को प्रदर्शित करती हुई कई खूबसूरत दर्शनीय स्थल है। अगर आप भी इस पावन और पवित्र गांव घूमने जाना चाहते हैं तो आज का यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित हो सकता है।

क्योंकि इस लेख में नंद गांव यात्रा से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण चिजों के बारे में बताया है। जैसे नंद गांव में घूमने लायक स्थान (Nand Gaon Me Ghumne ki Jagah), नंदगांव घूमने कब जाए, नंद गांव कैसे पहुंचे, नंद गांव में ठहरने की जगह और नंद गांव के स्थानीय भोजन आदि।

नंदगाँव का धार्मिक महत्व

नंदगांव जो नंदीश्वर महादेव की पहाड़ी पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवकी के आठवें पुत्र यानी कि भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कंस के वध का आकाश गर्जन हुआ था। जिसके बाद कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए कई बार प्रयास किए। लेकिन वह भगवान श्री कृष्ण का बाल बांका तक नहीं कर पाया।

कृष्ण जी जब छोटे थे, उनके असल पिता वासुदेव ने उन्हें अपने मित्र नंद जी के यहां गोकुल में लाकर छोड़ दिया। तब कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षसों को गोकुल भेजा। तांडव ऋषि ने उसी समय कंस को श्राप देते हुए कहा कि अगर कोई राक्षस या दूत नंदी पहाड़ी पर जाएगा तो वह पत्थर का बन जाएगा।

ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण को राक्षसों की बुरी दृष्टि से बचाने के लिए उनके पिता नंद जी ने अपने परिवार और गोप ग्वालों को लेकर नंदग्राम गए और यहीं पर अपना स्थाई निवास बनाया। यहां पर इन्होंने महल का निर्माण किया और उसके आसपास गोप ग्वालों ने भी अपना बसेरा डाल लिया।

इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन का पूरा समय बिताया, गोपियों के साथ रासलीला खेली, दोस्तों के साथ खूब कृष्ण लीला की।

नंदगांव से जुड़े रोचक तथ्य

  • नंदगांव नंदीश्वर पहाड़ी पर स्थित है और नंदेश्वर का अर्थ होता है नंदी का स्वामी जो भगवान शिव का दूसरा नाम है। यह नाम भगवान शिव के व्यक्तित्व से लिया गया है।
  • यहां भगवान कृष्ण के पारलौकिक अतीत के दर्शन हुए हैं।
  • भगवान शिव जी भगवान कृष्ण के बचपन और युवा अतीत का साक्षी बनना चाहते थे, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने घोर तपस्या की। भगवान श्रीकृष्ण शिव जी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पहाड़ी के रूप में वृंदावन के इस स्थान पर रहने के लिए निर्देश दिया। इसके बाद भगवान शिव नंदीश्वर पहाड़ी का रूप धारण करके नंद गांव में निवास किए और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के परलोकिक अतीत का आनंद लिया।
  • नंद गांव में भगवान श्री कृष्ण के अतीत को समर्पित कई सारे मंदिर में मौजूद हैं।
  • नंदगांव वृंदावन के विभिन्न उपवनो में से एक माना जाता है।

नंदगांव के दर्शनीय स्थल (Nand Gaon Me Ghumne ki Jagah)

श्री कृष्ण बलराम मंदिर

भगवान श्री कृष्ण के पिता नंद जी ने नंद गांव में श्री कृष्ण बलराम मंदिर बनाया था। बाद में इस महल को भगवान श्री कृष्ण बलराम मंदिर बनाया गया। इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण और बलराम दोनों की ही प्रतिमा विराजमान है।

श्री कृष्ण बलराम मंदिर

भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा काले रंग के ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है। मंदिर में भगवान श्री कृष्ण और बलराम के अलावा मां यशोदा, नंद बाबा और बलराम की माता रोहिणी की मूर्तियां भी हैं।

इस मंदिर को नंद भवन, नंद महल और 84 खंबा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में 84 खंभे हैं।

श्री कृष्ण बलराम मंदिर में कई सारे छोटी-छोटी मूर्तियां स्थापित है, जिसमें से एक मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह मूर्ति अपने आप ही उत्पन्न हुई है।

मंदिर के दीवारों पर भगवान श्री कृष्ण की कई सारी तस्वीरें एवं पेंटिंग्स है, जिसके जरिए भगवान श्री कृष्ण के बचपन से जुड़ी कई स्मृतियों को जीवंत किया गया है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 60 से 70 सीढ़ियां लगी है।

केसरिया वस्त्रों में हरे रामा–हरे कृष्णा की धुन में तमाम विदेशी महिला–पुरुष यहाँ देखे जाते हैं और उन्हीं की उपस्थिति की वज़ह से इस मंदिर को अंग्रजों के मन्दिर का नाम मिला। इसमें राधा कृष्ण की भव्य एवं काफी सुन्दर मूर्तियाँ हैं।

नंदगाँव की लट्ठमार होली

यूं तो नंद गांव में बहुत सारे पर्यटन स्थल और खूबसूरत मंदिर है, जिन्हें आप देख सकते हैं‌। लेकिन इसके अलावा नंदगांव की सबसे आकर्षक चीज है लठमार होली। लेकिन इसके लिए आपको मार्च महीने में जाना होगा। अगर आप मार्च महीने में नंदगांव घूमने जाते हैं तो वहां की लठमार होली देखने का लुफ्त उठा सकते हैं।

नंदगाँव की लट्ठमार होली

इस समय हजारों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से इस त्योहार में भाग लेने के लिए यहाँ आते हैं। यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और रंग पंचमी के दिन समाप्त हो जाता है। आमतौर पर बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को ठीक इसके विपरीत बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगाँव जाते हैं।

कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण नंद गांव से बरसाना गोपियों के साथ होली खेलने के लिए कमर में फेंटा लगाए जाया करते थे और गोपियों के साथ ठिठोली करते थे।

राधा रानी और गोपियां श्री कृष्ण और उनके ग्वालों पर डंडे बरसाए करती थी जिससे बचने के लिए ग्वाले भी लाठी या ढालो का प्रयोग करते थे।

इस तरह यह धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गई और आज भी गोकुल में इसी तरह की होली खेली जाती हैं, जो देश भर में प्रसिद्ध है। इस लठमार होली को देखने के लिए फागुन के महीने में होली के दिन दूर-दूर से लोग आते हैं।

शनि मंदिर

नंद गांव में कोकिलावन में शनि मंदिर है, जो पावन सरोवर से कुछ ही दूरी पर है। यह शनि देव का एक प्राचीन मंदिर है।यह मंदिर घने जंगलों में स्थित है। यही कारण है कि इसका नाम कोकिलावन है। यह शनि देव और उनके गुरु बरखंडी बाबा का बहुत प्राचीन मंदिर है। पूरे भारत से श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं।

शनि मंदिर

किंवदंतियों के अनुसार भगवान शनि देव जब ब्रज में आए थे तो ब्रज वासियों को उनसे कोई कष्ट ना हो, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने इसी स्थान पर उन्हें स्थित कर दिया था और इसी स्थान पर आज यह मंदिर बना हुआ है।

शनिचरी अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। हर शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और वे भगवान शनिदेव की 3 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं। इस स्थान से नंद गांव का नजारा बहुत ही खूबसूरत लगता है।

हाऊ बिलाऊ मूर्तियां

नंद गांव में यशोदा कुंड के समीप एक छोटी सी पर्वत शीला पर पत्थर की दो टूटी हुई मूर्तियां दिखाई देती है, जो करीबन 3 फीट की होगी। इस मूर्ति को हाऊ बिलाऊ की प्रतिमा मानी जाती है।

हाऊ बिलाऊ

किंवदंतियों  के अनुसार कहा जाता है कि नंदीश्वर पर्वत पर किसी प्राचीन समय में शांडिल्य ऋषि तपस्या किया करते थे। लेकिन कुछ असुर राक्षस उनके तप में बाधा डालने पहुंच जाते थे। उनसे कुपित होकर ऋषि शांडिल्य ने श्राप दिया कि जो भी असुर प्रवृत्ति का व्यक्ति इस पर्वत क्षेत्र में आएगा वह पाषाण बन जाएगा।

कहा जाता है कि हाऊ बिलाऊ भी इसी श्राप के कारण यहां पर आकर पाषाण बन गए। इस तरह यह स्थान असुर शक्तियों से सुरक्षित हो गई थी।

उद्धव दास महाराज का कहना है कि नंद महल से माता यशोदा स्नान करने के लिए यहां आती थीं और कन्हा जब छोटे थे तो कान्हा को साथ लेकर आती थीं। कंस के जो राक्षस है उन्हें शांडिल्य मुनि का श्राप था कि जो भी नंद गाँव की सीमा के अंदर आ जाएगा वह पत्थर का बन जाएगा। इसी वजह से जो राक्षस आते थे वह भगवान श्रीकृष्ण को यहां आकर डराते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने जितने भी राक्षसों के वध किए वह नंद गांव से बाहर किए जो भी राक्षस नंद गांव में प्रवेश कर गया वह पत्थर का बन गया था। हाऊ बिलाऊ कंस के असुर हैं।

मोती कुण्ड

नंद गांव में एक और दर्शनीय स्थल मोतीकुंड है, जो नंदीश्वर पहाड़ और पावन सरोवर से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

पौराणिक मान्यता इस प्रकार है कि राधा रानी के पिता वृषभानु ने कृष्ण के पिता नंदराय को कीमती मोती के आभूषण भेंट स्वरूप दिए थे।

मोती कुण्ड

नंदराय जी उन्हें वापसी भेंट में इससे ज्यादा कीमती चीज देना चाहते थे, जिसके लिए भगवान श्री कृष्ण ने उन मोतियों की खेती की और उससे बड़े आकार के मोती के वृक्ष उगाएं।

उसी स्थान पर एक सरोवर प्रकट हुआ,जिसे मुक्ता सरोवर या मोतीकुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के पास में ही प्राचीन मंदिर बना हुआ है, जहां भगवान श्री कृष्ण के रूप को मोति बिहारी के नाम से पूजा जाता है।

यहां पर भंडारे भी होते हैं। कहा जाता है कि सरोवर के पास आज भी कुछ वृक्ष है, जहां पर मोतियों की तरह फल उगते हैं। वास्तव में, यह पीलू के फल की एकमात्र प्रजाति का वृक्ष है।

इस मंदिर में अखंड रामायण पाठ चलते रहता है। मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ यहां अक्सर बनी रहती है।

पावन सरोवर

नंदीश्वर पर्वत की तलहटी में स्थित पावन सरोवर 20 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ एक विशाल तालाब है। इस सरोवर का जल बहुत ही साफ है, इसीलिए इस सरोवर को पावन सरोवर के नाम से जाना जाता है।

पावन सरोवर

किंवदंतियों के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण के पिता नंद जी तीर्थ यात्रा करने की इच्छा जताई तब भगवान श्रीकृष्ण ने इस सरोवर का निर्माण किया, जिसने नंद बाबा को संपूर्ण तीर्थ दिखाया‌।

इस सरोवर में भगवान श्री कृष्ण और गोप प्रतिदिन दिन शाम को अपने गायों के झुंड के साथ आते थे, स्नान करते थे और वक्त बिताया करते थे।

भजन कुटीर सनातन गोस्वामी

नंद गांव में पावन सरोवर के पास ही एक और दर्शनीय स्थल श्री गोस्वामी जी की भजन कुटी स्थित है। यह कुटीर कदंब टेरी से सटी हुई पश्चिम दिशा में है।

माना जाता है कि श्री रूप गोस्वामी कृष्ण की मधुर लीलाओं को याद करने के लिए लोग अक्सर इस स्थान पर आकर भजन-कीर्तन करते थे और ग्रंथ लिखते थे।

कहते हैं एक बार भगवान श्री कृष्ण गोस्वामी जी के स्वप्न में आते हैं और उन्हें बताते हैं कि नंदेश्वर पर्वत की गुफा में मां यशोदा, बलराम और नंद बाबा की मूर्तियां रखी हुई है, जिसे रूप गोस्वामी वहां से उठाकर यहां स्थापित कर देते हैं।

नरसिंह और वराह मंदिर

नंद गांव में नंदीश्वर पहाड़ी की तलहटी में नरसिंह और वराह मंदिर स्थित है। यह मंदिर पावन सरोवर के विपरीत दिशा में मौजूद है।

नरसिंह और वराह मंदिर

किवदंतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पिता नंद राय जी अक्सर इस मंदिर में आकर भगवान नरसिंह और वराह की पूजा किया करते थे, जिसकी सलाह उन्हें गर्गाचार्य ने दी थी।

यशोदा कुंड

नंद गांव में नरसिंह मंदिर से 300 मीटर की दूरी पर स्थित यशोदा कुंड नंद गांव का एक प्रमुख कुंड है। कहा जाता है कि इस कुंड में भगवान श्री कृष्ण की माता यशोदा स्नान किया करती थी।

यशोदा कुंड

इसीलिए इस कुंड का नाम यशोदा कुंड पड़ा है। कुंड के पास एक मंदिर भी बना हुआ है, जो मां यशोदा को समर्पित है।

नंद बैठक

नंद गांव में एक और प्रमुख दर्शनीय स्थल नंद बैठक है। कहा जाता है यह वही स्थान है, जहां पर भगवान श्री कृष्ण के पिता नंदराय अपने सहयोगी मित्रों एवं हितैशियों के साथ यहां पर बैठा करते थे और आपस में विचार-विमर्श किया करते थे।

नंद बैठक

इसी स्थान के समीप एक कुंड भी है, जिसे नंद कुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड पर नंदराय स्नान किया करते थे।

चरण पहरी

नंद गांव में नंद भवन, पावन सरोवर और नंदेश्वर मंदिर के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है। चरण पहरी जिसे चरण पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यह पहाड़ी नंद गांव से दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित है।

चरण पहरी

कहा जाता है कि इस पहाड़ी पर आज भी भगवान श्री कृष्ण के चरण चिन्ह देखने को मिलते हैं। 5000 साल से भी अधिक वर्षों के बाद भी आज यहां पर भगवान श्री कृष्ण के पद्मचिन्ह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।

भगवान श्री कृष्ण के चरण के अतिरिक्त गोप और गोपियों के पद चिन्ह भी प्रकट होते हैं। किवदंती के अनुसार कहा जाता है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण इस पहाड़ पर अपने गायों को चराने के बाद वापस लाने के लिए बांसुरी बजाए।

बांसुरी की आवाज इतनी मधुर थी कि पूरा पहाड़ पिघलने लगा, जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण के चरणों का चिन्ह यहां पर बन गया। भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के बीच यह जगह बहुत ही महत्वपूर्ण है।

वृंदा कुण्ड, गुप्त कुण्ड

ब्रज भूमि पर बहुत सारे कुंड है और उन्हीं महत्वपूर्ण कुंडों में से एक गुप्त कुंड है। यह कुंड नंद गांव से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

वृंदा कुण्ड, गुप्त कुण्ड

कहा जाता है कि इस स्थान पर राधा और कृष्ण जी भोर के समय गुप्त रुप में मिला करते थे। इसीलिए इस कुंड को गुप्त कुंड कहा जाता है।

इसके अतिरिक्त इस कुंड को वृंदा कुंड भी कहा जाता है। वृंदा का अर्थ होता है तुलसी। यहां पर कुंड के समीप एक सुंदर मंदिर स्थित है, जिसमें मां तुलसी की प्रतिमा विराजमान है।

ललिता कुंड

नंद गांव में बहुत सारे पवित्र कुंड है, जिसमें से एक ललिता कुंड है। यह कुंड नंद गांव के पूर्व दिशा में स्थित है, उसी के आगे सूर्यकुंड भी स्थित है।

ललिता कुंड

हरे भरे वनों के भीतर स्थित यह रमणीय सरोवर काफी मनमोहक लगता है। माना जाता है इसी स्थान पर राधा रानी की सखी ललिता स्नान किया करती थी और यहां पर व झूला झूला करती थी।

किंवदंतियों के अनुसार बहुत बार ललिता जी छल या बहाने से राधारानी को यहां पर लाकर भगवान श्रीकृष्ण से उनका भेट कराया करती थी। इस कुंड के आगे ही एक मंदिर है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण और राधा सहित ललिता की मूर्ति विराजमान है।

आशेश्वर महादेव मंदिर

नंद गांव से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर शांत वातावरण में एक वन के बीच स्थित भगवान शिव को समर्पित आशेश्वर महादेव मंदिर ब्रजभूमि के प्रसिद्ध पंच महादेव मंदिरों में से एक है।

इस मंदिर में अपनी मनोकामना को लेकर श्रद्धालु दूर दराज से आते हैं। खासकर के महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में काफी ज्यादा भीड़ रहती है। उस दिन मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों से सजा दिया जाता है।

आशेश्वर महादेव मंदिर

मंदिर के समीप एक कुंड भी है, जिसे आशेश्वर कुंड के नाम से जाना जाता है। किवदंती के अनुसार कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान शिव भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को देखने के लिए बहुत ललाहित थे।

इसीलिए वे अपनी वेशभूषा बदलकर नंद गांव पहुंचते हैं लेकिन उनके विचित्र वेशभूषा, सांप और बिच्छू आदि देख माता यशोदा भयभीत होकर उन्हें भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने से मना कर देती हैं।

जिसके बाद भगवान शिव जी नंद गांव के ही एक वन में स्थित कुंड के तट पर समाधि लगा कर बैठ जाते हैं। जहां पर भगवान श्री कृष्ण लीला रचते हैं और अपने बाल स्वरूप का दर्शन भगवान शिव जी को कराते हैं।

कहा जाता है कि आज भी भोलेनाथ जी भगवान श्री कृष्ण के दर्शन की आस लेकर यहां विराजमान है। इसीलिए इस मंदिर को आशेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के बाहर एक इमारत में भंडारा का भी आयोजन किया जाता है।

नंदगाँव में स्थानीय भोजन

नंद गांव में शाकाहारी पर्यटकों के लिए व्यंजन की कई वैरायटी मौजूद है। हालांकि मांसाहारी लोगों को यहां पर मुश्किल से मांसाहारी व्यंजन देखने को मिलेगा।

क्योंकि नंद गांव एक धार्मिक स्थान है, जो भगवान श्री कृष्ण की भूमि है। इसीलिए इस पावन भूमि पर ज्यादातर शाकाहारी भोजन ही हर जगह परोसे जाते हैं।

यहां पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानीय भोजन सहित अन्य राज्यों के भी लोकप्रिय व्यंजन परोसे जाते हैं। नंद गांव के स्ट्रीट फूड भी काफी स्वादिष्ट होते हैं। यहां की लस्सी का एक अलग ही स्वाद होता है।

नंदगांव कैसे पहुंचे?

नंदगांव पहुंचने के लिए आपके पास वायु, सड़क और रेल तीनों ही मार्ग का विकल्प मौजूद है।

अगर आप नंदगांव वायु मार्ग के जरिए पहुंचना चाहते हैं तो बता दें कि नंद गांव में कोई भी घरेलू हवाई अड्डा नहीं है। लेकिन नंद गांव का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा आगरा विमानक्षेत्र और दिल्ली विमानक्षेत्र पड़ता है।

दिल्ली और आगरा से आप मथुरा तक के लिए किसी भी सरकारी बस की सवारी ले सकते हैं। मथुरा से तकरीबन 1 घंटे की दूरी पर नंदगांव है।

नंदगांव पहुंचने के लिए सबसे सस्ता यातायात का माध्यम रेलमार्ग है। रेल मार्ग के जरिए बहुत ही कम बजट में और सुलभ तरीके से नंदगांव पहुंच सकते हैं।

नंदगांव के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा पश्चिम केंद्रीय रेल स्टेशन है, जो भारत की सभी प्रमुख शहरों से जुड़ी हैं।

नंद गांव जाने के लिए आप सड़क मार्ग का चयन कर सकते हैं। आप अपने निजी वाहन या उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग या रोडवेज की सीधी बस के जरिए नंदगांव पहुंच सकते हैं।

नंद गांव में ठहरने की जगह

नंद गांव में ठहरने की कई सारी जगह है। अगर आपका बजट हाय है और आप अच्छी सुविधाओं के साथ रहना चाहते हैं तो यहां पर आपको शानदार होटल मिल जाते हैं, जहां पर आपको विभिन्न सुविधाओं के साथ रूम मिल जाएंगे।

इसके अतिरिक्त यहां पर कई लोज और गेस्ट हाउस भी है। यहां पर मौजूद धर्मशाला में आप मुफ्त में रह सकते हैं, जंहा पर आपको फ्री में भोजन भी मिल जाता है।

नंदगाँव घूमने जाने का सबसे अच्छा समय

नंदगांव भगवान श्री कृष्ण की धरती है, जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने अपना पूरा बचपन बिताया था। इसीलिए कृष्ण भक्त साल भर नंद गांव घूमने के लिए आते हैं।

लेकिन अगर आप नंद गांव के सभी पर्यटन स्थलों को देखने का लुफ्त उठाना चाहते हैं तो एक अच्छे समय का चयन करना बहुत ही जरूरी है।

वैसे नवंबर से मार्च तक का समय नंद गांव घूमने के लिए सबसे उचित माना जाता है। अगर आप मार्च में आते हैं तो यहां की प्रसिद्ध होली लठमार होली भी देख सकते हैं।

जून जुलाई महीने में यहां पर काफी ज्यादा गर्मी होती है। ऐसे में गर्मियों के दौरान नंद गांव घूमने का मजा थोड़ा किरकिरा हो सकता है।

बारिश के मौसम के दौरान भी नंदगांव घूमने आ सकते हैं लेकिन साथ में रैनकोट क्या छाता जरूर रखें।

नंदगांव घूमने का खर्चा

नंदगांव मथुरा जिला के बरसाना क्षेत्र का एक छोटा सा गांव है, जो धार्मिक दृष्टि से एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। नंदगांव घूमने का खर्चा बहुत ही कम लगता है।

आप बहुत कम बजट में भी नंदगांव घूमने आ सकते हैं। क्योंकि यहां पर सभी पर्यटन स्थल को बिना किसी प्रवेश शुल्क के आप विजिट कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त यहां पर मौजूद धर्मशाला में आप मुफ्त में रह सकते हैं और मुफ्त में भोजन भी खा सकते हैं। इस तरह नंदगांव घूमने का जो भी खर्चा है, वह आपकी यातायात का ही खर्चा लगेगा।

नंद गांव जाते समय किन बातों का ध्यान रखें?

नंदगांव की यात्रा पूरी तरह सुरक्षित है फिर भी आपको कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योंकि वहां पर हो सकता है आपको कई गाइड और फर्जी पंडित मिल सकते हैं, जो आपको पूरा नंदगांव घुमाने का दावा करेंगे।

लेकिन वह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आपको लेकर जाते हैं और हर किसी को आपको पैसे देने होते हैं। इसीलिए कोशिश करें आप खुद ही घूमने की।

क्योंकि नंदगांव एक बहुत ही छोटा सा गांव है। आप बहुत ही आसानी से यहां के सभी पर्यटन स्थल को विजिट कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त नंदगांव एक पवित्र भूमि है। यहां पर जाते समय सभ्य कपड़े ही पहन कर जाएं।

FAQ

नंद गांव कहां पर स्थित है?

नंद गांव उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में बरसाना ग्राम के पास एक नंदीश्वर नामक सुंदर पहाड़ी पर स्थित है।

नंद गांव क्यों प्रसिद्ध है?

नंद गांव भगवान श्री कृष्ण के लिए प्रसिद्ध है। भगवान श्री कृष्ण के पिता जी गोकुल से यहां पर भगवान श्री कृष्ण को लेकर बस गए थे। इसीलिए इस स्थान को नंदगांव के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने अपना बचपन यहीं पर बिताया था।

नंद गांव घूमने के लिए कितने दिन की योजना बनाएं?

नंद गांव मथुरा जिले में बरसाना के पास स्थित है छोटा सा गांव है। नंद गांव घूमने के लिए 1 दिन ही काफी है। 1 दिन के अंदर आप नंदगांव के लगभग सभी खूबसूरत पर्यटन स्थलों को देख सकते हैं।

नंद गांव से बरसाना और मथुरा की दूरी कितनी है?

नंद गांव से बरसाना की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है। वहीं नंद गांव से मथुरा की दूरी 42 किलोमीटर है।

नंदगांव के पर्यटन स्थल कब घूमने जा सकते हैं?

नंद गांव में स्थित सभी खूबसूरत पर्यटन स्थल सुबह से शाम तक खुले रहते हैं।

क्या नंदगांव के पर्यटन स्थल को घूमने के लिए प्रवेश शुल्क लगता है?

नंद गांव में मौजूद किसी भी पर्यटन स्थल को देखने के लिए किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लगता है।

नंद गांव में घूमने की कौन-कौन सी जगह है?

नंद गांव में नंद भवन एक प्रमुख मंदिर है। इसके अतिरिक्त यहां पर कई सारे अन्य प्रसिद्ध मंदिर और कुंड है, जो महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है जैसे कि बेलकुंड, रोहिणी गोदनी कुंड, मानसरोवर, सनातन गोस्वामी की तपोभूमि, फुलवारी कुंड, कदम कुंड, कृष्ण कुंड, श्याम पीपर कदम, राधा कृष्ण मंदिर, गोवर्धन नाथ मंदिर, सूर्यकुंड, नंदीश्वर, नंदबाग, गौशाला, उद्धव बैठक इत्यादि।

निष्कर्ष

उपरोक्त लेख में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक धार्मिक स्थल नंद गांव की यात्रा से जुड़ी महत्वपूर्ण चीजों के बारे में बताया।

इस लेख में हमने नंद गांव में मौजूद विभिन्न देखने लायक स्थल नंद गांव पहुंचने के मार्ग, नंदगांव का स्थानीय भोजन एवं नंद गांव जाने के उचित समय के बारे में बताया।

हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख नंदगांव की यात्रा को आसान बनाने में आपकी मदद करेगा।

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